Edited By suman prajapati, Updated: 16 Nov, 2024 05:56 PM
फिल्मकार सुभाष घई को फिल्म इंडस्ट्री में उनकी बेहतरीन फिल्मों के लिए जाना जाता है। अपने करियर में उन्होंने हीरो, सौदागर, कर्मा और राम लखन जैसी शानदार फिल्में दी हैं। हाल ही में उनकी आत्मकथा कर्माज चाइल्ड का विमोचन किया गया। इस कार्यक्रम में सुभाष घई...
मुंबई. फिल्मकार सुभाष घई को फिल्म इंडस्ट्री में उनकी बेहतरीन फिल्मों के लिए जाना जाता है। अपने करियर में उन्होंने हीरो, सौदागर, कर्मा और राम लखन जैसी शानदार फिल्में दी हैं। हाल ही में उनकी आत्मकथा कर्माज चाइल्ड का विमोचन किया गया। इस कार्यक्रम में सुभाष घई के साथ इम्तियाज अली भी नजर आए। इस दौरान इम्तियाज अली ने मीडिया से बातचीत में सुभाष घई की जमकर तारीफ की और उन्हें अपना गुरू भी बताया।
इम्तियाज अली ने कहा है कि उन्होंने सुभाष घई को हमेशा अपना द्रोणाचार्य माना है क्योंकि जमशेदपुर में रहकर पढ़ाई करने के दौरान घई की फिल्मों ने उन्हें कहानी कहने की कला सिखाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
अली ने कहा, ‘‘आप सुभाष घई की फिल्मों के संगीत के बारे में जानते हैं। उनकी फिल्मों का संगीत बहुत लोकप्रिय है और आपके दिल को छू जाता है। उन्होंने अच्छे और लोकप्रिय संगीत के बीच एक सुंदर संतुलन बनाए रखा है।''
इम्तियाज अली ने आगे कहा, ‘‘आप दृश्य या अदृश्य गुरुओं से अच्छी चीजें सीखते रहते हैं। जब मैं जमशेदपुर में एकलव्य की तरह था, तब सुभाष घई एक द्रोणाचार्य की तरह थे और मैंने उनकी फिल्मों से सीखा। उन्होंने किताब पूरी तरह से नहीं पढ़ी है, लेकिन उन्होंने जो अध्याय पढ़े हैं, वे फिल्मों और जीवन के बारे में बहुत अच्छी बातें सिखाते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘कर्माज चाइल्ड'' ऐसी पुस्तक है जिसे हर फिल्म प्रेमी को अवश्य पढ़ना चाहिए। ‘‘जब वी मेट'', ‘‘रॉकस्टार'', ‘‘तमाशा'' और ‘‘लव आज कल'' जैसी फिल्मों के लिए मशहूर अली ने कहा कि घई की 1983 की प्रेम कहानी ‘‘हीरो'' ने उनके जीवन पर बहुत बड़ा प्रभाव डाला। ‘‘हीरो'' में जैकी श्रॉफ और मीनाक्षी शेषाद्रि ने अभिनय किया था। मैं उस उम्र में, वह सब देख रहा था, वह संगीत सुन रहा था और जिस तरह से सुभाष जी ने वह फिल्म बनाई थी, उसका मुझ पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। मैं हमेशा अपने दोस्तों को 'हीरो' की कहानी सुनाया करता था और धीरे-धीरे स्कूल में मेरा झुकाव ड्रामा की ओर हुआ।''
इस दौरान इम्तियाज अली ने घई के साथ अपनी पहली मुलाकात को भी याद किया और कहा, ‘‘सुभाष जी मेरी फिल्म 'सोचा न था' देखने आए थे। वह इतने बड़े व्यक्तित्व थे कि मैं उनके सामने खड़ा होने की हिम्मत भी नहीं कर पाया। सौभाग्य से उन्हें मेरी फिल्म पसंद आई। उस समय फिल्म मुश्किल में थी, यानी रिलीज नहीं हो पा रही थी और कुछ पैसों की जरूरत थी।''
उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए सुभाष जी ने टीवी अधिकार खरीदे ताकि फिल्म रिलीज हो सके। उनका नजरिया था कि फिल्म अच्छी और प्यारी है, इसे रिलीज होना ही चाहिए। बाद में उन्होंने मुझे भी साइन कर लिया। जब मैंने उन्हें पहली बार देखा तो वह एक देवता की तरह थे जिन्होंने मुझे बचाया और मेरी फिल्म रिलीज करायी।''
सुभाष घई ने कहा कि वह अपने संस्मरण को लेकर खुश होने के साथ-साथ घबराये भी हैं। उन्होंने कहा, ‘‘जब भी आप फिल्मों में कोई कहानी सुनाते हैं तो उसमें कई बार अच्छी और बुरी चीजें (जुड़ी) होती हैं। आपने कुछ लोगों के खिलाफ बोला है और आपको कुछ लोगों से सहमत होना है। इसलिए, यह दौर उतार-चढ़ाव वाला है, निर्देशक की दुविधा वाला है। मैंने अपने अनुभव को अपने नजरिये से व्यक्त किया है।''