Edited By Diksha Raghuwanshi, Updated: 14 Aug, 2025 12:08 AM
कभी-कभी कोई फिल्म दर्शकों को सिर्फ रोमांच नहीं देती, बल्कि सोचने पर भी मजबूर करती है।
फिल्म: तेहरान (Tehran)
कलाकार: जॉन अब्राहम (John Abraham), नीरू बाजवा (Neeru Bajwa), मानुषी छिल्लर (Manushi Chhillar), हादी खजनपोर (hadi khanjanpour)
निर्देशक: अरुण गोपालन (Arun Gopalan)
रेटिंग- 4*
Tehran Movie Review :‘तेहरान’ एक शोर-शराबे वाली एक्शन फिल्म नहीं है, न ही इसमें हीरो का सुपरमैन वाला अवतार है। यह फिल्म धीरे-धीरे आपको अपने जाल में फंसाती है — एक सच्ची घटना से प्रेरित, जिसमें साजिशें हैं, सियासत है और एक इंसान की निजी लड़ाई है जो सिस्टम की सीमाओं से टकराती है।
कहानी
फिल्म की शुरुआत दिल्ली में हुए एक बम धमाके से होती है, जिसमें कई मासूम लोग घायल हो जाते हैं और एक छोटी सी बच्ची की जान चली जाती है। इस हादसे की जांच की ज़िम्मेदारी मिलती है डीसीपी राजीव कुमार (जॉन अब्राहम) को। पर मामला तब और गंभीर हो जाता है जब पता चलता है कि मारी गई बच्ची राजीव के लिए सिर्फ एक केस फाइल नहीं, बल्कि एक निजी जुड़ाव थी।
जैसे-जैसे राजीव तहकीकात करता है, वह देखता है कि ये घटना एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय राजनीति का हिस्सा है — जिसमें ईरान और इज़राइल की पुरानी तनातनी और भारत की कूटनीतिक दुविधा शामिल है।

एक्टिंग
इस फिल्म में जॉन अब्राहम को देखकर लगेगा जैसे उन्होंने अपने पुराने अवतार को पीछे छोड़ दिया है। यहाँ कोई पंच मारने वाले डायलॉग नहीं हैं, कोई “डॉन टाइप” एटीट्यूड नहीं है। राजीव का किरदार शांत है, सोचने वाला है, और अंदर से टूटा हुआ है। जॉन का अभिनय सधा हुआ है — वो कम बोलते हैं लेकिन बहुत कुछ कह जाते हैं। उनकी आंखों में गुस्सा भी है और दर्द भी।
नीरू बाजवा ने वरिष्ठ राजनयिक के रूप में बहुत संतुलित और कंट्रोल्ड परफॉर्मेंस दी है। उनकी भूमिका छोटी है, लेकिन हर बार जब वह पर्दे पर आती हैं, वो भरोसा दिलाती हैं कि राजनीति सिर्फ भाषणों से नहीं, धैर्य और चतुराई से भी चलती है। मानुषी छिल्लर एक पुलिस अफसर के रूप में स्क्रीन पर हैं, और भले ही उनका स्क्रीन टाइम सीमित है, लेकिन वह जिस मोड़ पर कहानी को ले जाती हैं, वह बहुत अहम है।हादी खजनपोर का अभिनय इस फिल्म का सबसे खतरनाक चेहरा है। उन्होंने आतंकवादी का रोल बिना किसी ओवरएक्टिंग के निभाया है, जो उनकी परिपक्वता को दिखाता है।
तेहरान की सबसे बड़ी ताकत है इसका स्क्रीनप्ले। कहानी को ज़बरदस्ती नहीं खींचा गया हैं फिल्म दर्शकों से उम्मीद करती है कि वे सोचें, जुड़ें और सिचुएशन्स को खुद समझें। लेखक रितेश शाह, आशीष वर्मा और बिंदनी करिया की लेखनी इस बात का ध्यान रखती है कि फिल्म न तो एकतरफा हो, और न ही भावनात्मक रूप से खोखली लगे।
निर्देशन
डायरेक्टर अरुण गोपालन का निर्देशन साफ़ है, टाइट है, और वो एक पल के लिए भी फिल्म को फालतू ड्रामा की ओर नहीं ले जाते। उन्होंने थ्रिल और इमोशन के बीच का बैलेंस बखूबी संभाला है।
कैमरा वर्क बहुत वास्तविक है — चाहे वो दिल्ली की भीड़भाड़ हो या विदेशी लोकेशन की ठंडक, हर फ्रेम कहानी का हिस्सा लगता है। बैकग्राउंड म्यूज़िक बहुत subtle (सधा हुआ) है। कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि म्यूज़िक आपको जबरन सीन में घुसा रहा है, बल्कि वो कहानी के साथ बहता है। एडिटिंग भी फ़ास्ट है , आपको कभी भी फिल्म में बोरियत महसूस नहीं होगी।

फिल्म का दूसरा भाग बहुत दिलचस्प है। जब सरकार किसी सियासी वजह से कदम पीछे खींचती है, तब राजीव खुद फैसला करता है कि वो रुकने वाला नहीं। अब ये केस उसके लिए सिर्फ ड्यूटी नहीं, बल्कि ज़रूरी बदला बन जाता है — जिससे न सिर्फ इंसाफ होगा, बल्कि उसकी आत्मा को भी सुकून मिलेगा।
तेहरान की खास बात यह भी है कि इसमें कोई भी किरदार “भराव” के लिए नहीं है। हर इंसान की एक भूमिका है, और उनका असर कहानी पर पड़ता है। इससे फिल्म और अधिक वास्तविक लगती है।
तेहरान एक गंभीर, सोची-समझी और संवेदनशील फिल्म है। यह उन दर्शकों के लिए है जो सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि एक सच्चाई देखना चाहते हैं — जो दुनिया की राजनीति और व्यक्तिगत दर्द को जोड़ती है।
अगर आप हल्की-फुल्की थ्रिलर की उम्मीद कर रहे हैं, तो यह फिल्म आपके लिए नहीं। लेकिन अगर आप एक गंभीर, वास्तविक और असरदार कहानी का अनुभव लेना चाहते हैं — तो तेहरान ज़रूर देखिए।
मैडॉक फिल्म्स और बेक माय केक फिल्म्स द्वारा निर्मित यह फिल्म अब ZEE5 पर स्ट्रीम पर हो रही है।