Edited By suman prajapati, Updated: 13 Jun, 2025 05:52 PM

बॉलीवुड इंडस्ट्री के मशहूर लेखक-गीतकार जावेद अख्तर अपने बेबाक बयानों को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहते हैं। वह बिना किसी हिचकिचाहट के लोगों के बीच अपनी स्पष्ट बात रखते हैं और कई बार तो ट्रोलर्स के निशाने पर भी आ जाते हैं। अब हाल ही में जावेद ने धर्म...
मुंबई. बॉलीवुड इंडस्ट्री के मशहूर लेखक-गीतकार जावेद अख्तर अपने बेबाक बयानों को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहते हैं। वह बिना किसी हिचकिचाहट के लोगों के बीच अपनी स्पष्ट बात रखते हैं और कई बार तो ट्रोलर्स के निशाने पर भी आ जाते हैं। अब हाल ही में जावेद ने धर्म के मामले पर चर्चा की और इसकी तुलना शराब से करते नजर आए। तो आइए विस्तार में जानते हैं गीतकार ने आगे और क्या कहा..
जावेद अख्तर ने हाल ही में रेडियो के साथ एक इंटरव्यू में धर्म पर चर्चा की। उन्होंने धर्म की तुलना शराब से करते हुए कहा कि दोनों तब तक ठीक हैं जब तक उनका संयम में सेवन किया जाए, लेकिन शायद ही कभी जिम्मेदारी से सेवन किया जाता है।
दो पैग व्हिस्की फायदेमंद
उन्होंने कहा, दिन में दो पैग व्हिस्की वास्तव में फायदेमंद होते हैं। समस्या तब आती है जब लोग सिर्फ दो पैग पर रुक नहीं पाते। जावेद कई दशकों से शराब से दूर हैं और वो कई बार इस बात पर अफसोस जता चुके हैं कि उन्होंने अपने जीवन के कई साल शराब में बर्बाद कर दिए।
शराब और धर्म में बहुत समानता
जावेद ने कहा, ‘शराब और धर्म में बहुत समानता है। अमेरिकियों ने एक सर्वे किया था कि कौन ज्यादा जीता है। जो व्यक्ति शराब नहीं पीता या जो व्यक्ति हर दिन पूरी बोतल पीता है। तो यह पाया गया कि दोनों ही सलाह देने वाले नहीं हैं। जो लोग सबसे लंबे समय तक जीते हैं, वे वो हैं जो नियम से अपने डिनर से पहले दो पैग लेते हैं। दवाओं में शराब होती है, यह इतनी बुरी कैसे हो सकती है? बुरा है अति सेवन’।

उन्होंने आगे कहा, ‘अगर कोई व्यक्ति दो गिलास दूध पीता है तो यह ठीक है, लेकिन अगर वह दो गिलास व्हिस्की पीता है, तो यह ठीक नहीं है। लोग कभी दो पर नहीं रुकते? वे दूध के साथ अति नहीं करते, लेकिन वे व्हिस्की और धर्म के साथ अति करते हैं। यह हानिकारक हो जाता है। कुछ कैंसर कोशिकाएं आपको पतला रखेंगी, लेकिन वे बढ़ेंगी और आपको मार देंगी।’
विश्वास और मूर्खता में अंतर
आगे गीतकार ने सभी धर्मों के प्रति अपनी नापसंदगी को लेकर कहा, कुछ साल पहले, उनकी आध्यात्मिक नेता सद्गुरु के साथ एक बहस हुई थी। जो कुछ भी तर्क, कारण, साक्ष्य, गवाह से रहित है, वह विश्वास है। मुझे वास्तव में आश्चर्य होता है कि विश्वास और मूर्खता में क्या अंतर है, क्योंकि मूर्खता की भी यही परिभाषा है। मैं ‘विश्वास’ को स्वीकार करने के लिए तैयार हूं, लेकिन इसमें तर्क होना चाहिए।’