मुंबई के ऐतिहासिक स्टूडियो में से एक फिल्मिस्तान स्टूडियो की हुई बिक्री, 183 करोड़ रुपये में हुआ सौदा

Edited By suman prajapati, Updated: 06 Jul, 2025 01:17 PM

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मुंबई, जिसे भारतीय फिल्म इंडस्ट्री का दिल कहा जाता है, वहां के ऐतिहासिक स्टूडियो में से एक फिल्मिस्तान स्टूडियो अब बीते युग की याद बनता जा रहा है। हाल ही में इस स्टूडियो को आर्केड डेवलपर्स ने 183 करोड़ रुपये में खरीद लिया है। यह सौदा न केवल एक...

बॉलीवुड डेस्क. मुंबई, जिसे भारतीय फिल्म इंडस्ट्री का दिल कहा जाता है, वहां के ऐतिहासिक स्टूडियो में से एक फिल्मिस्तान स्टूडियो अब बीते युग की याद बनता जा रहा है। हाल ही में इस स्टूडियो को आर्केड डेवलपर्स ने 183 करोड़ रुपये में खरीद लिया है। यह सौदा न केवल एक संपत्ति का ट्रांसफर है, बल्कि भारतीय सिनेमा के इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ भी है।

3 जुलाई 2025 को इस स्टूडियो की बिक्री रजिस्टर की गई। आर्केड डेवलपर्स लिमिटेड यहां लगभग 3000 करोड़ रुपये की लागत से एक नया लग्जरी रेजिडेंशियल प्रोजेक्ट शुरू करने की योजना बना रहा है। इस योजना में दो ऊंची टॉवर्स होंगे, जिनमें 50 फ्लोर होंगे। यहां 3, 4 और 5 BHK फ्लैट्स के साथ-साथ पेंटहाउस भी बनाए जाएंगे। इसके 2026 तक शुरू होने की उम्मीद है।

यह मुंबई का तीसरा ऐतिहासिक स्टूडियो होगा जो मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में तब्दील किया जा रहा है। इससे पहले आरके स्टूडियो (चेंबूर) और कमालिस्तान स्टूडियो (जोगेश्वरी) को भी इसी तरह रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में बदला गया है।


1943 में हुई थी स्टूडियो की स्थापना
फिल्मिस्तान स्टूडियो की स्थापना 1943 में हुई थी। इस ऐतिहासिक स्टूडियो की नींव रखी थी प्रसिद्ध फिल्म निर्माता शशधर मुखर्जी ने, जो एक्ट्रेस काजोल और रानी मुखर्जी के दादा भी थे। उन्होंने अपने बहनोई, मशहूर एक्टर अशोक कुमार के साथ मिलकर इस स्टूडियो को खड़ा किया था।

ज्ञान मुखर्जी और बहादुर चुन्नीलाल भी इसके सह-संस्थापक थे। स्टूडियो की शुरुआत उस वक्त हुई जब अशोक कुमार ने मुंबई के सबसे प्रमुख स्टूडियो "बॉम्बे टॉकीज" को छोड़ दिया था और एक नई शुरुआत की ओर कदम बढ़ाया।

निज़ाम की फंडिंग और शानदार फिल्में
फिल्मिस्तान की स्थापना के पीछे हैदराबाद के निज़ाम – उस्मान अली खान की आर्थिक मदद भी मानी जाती है। इस स्टूडियो में कई ऐतिहासिक और सुपरहिट फिल्मों 'शहीद' (1948). 'शबनम' (1949), 'सरगम' (1950), 'अनारकली' (1953), 'नागिन' (1954), 'मुनीमजी' (1955) और 'पेइंग गेस्ट' (1957) की शूटिंग हुई।

यह वही स्थान है जहां 'तुमसा नहीं देखा' और 'जागृति' जैसी फिल्मों ने फिल्मफेयर अवॉर्ड जीते। यहां तक कि मंदिर, जेल, और श्मशान घाट जैसे स्थायी सेट्स भी बनाए गए, जिनका उपयोग दशकों तक फिल्मों और धारावाहिकों में किया गया।

सिर्फ स्टूडियो नहीं, एक प्रोडक्शन हब भी था
फिल्मिस्तान को केवल एक शूटिंग स्थल नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र फिल्म निर्माण इकाई के रूप में भी देखा जाता था। इसके पास साउंड स्टेज, आउटडोर सेट्स, और संपूर्ण प्रोडक्शन की व्यवस्था होती थी। कई दशकों तक यह स्टूडियो फिल्मों, टीवी धारावाहिकों और विज्ञापन शूट्स का प्रमुख केंद्र बना रहा।

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