Edited By Smita Sharma, Updated: 16 Jul, 2025 12:27 PM

बांग्लादेश में एक-एक कर उन सभी सांस्कृतिक विरासत को तबाह किया जा रहा है जिसका संबंध ना सिर्फ भारत बल्कि बंगाली संस्कृति से उससे जुड़ी है। पहले रवींद्रनाथ टैगोर के घर को तोड़ दिया गया। अब महान फिल्ममेकर सत्यजीत रे का बांग्लादेश के ढाका में स्थित...
मुंबई: बांग्लादेश में एक-एक कर उन सभी सांस्कृतिक विरासत को तबाह किया जा रहा है जिसका संबंध ना सिर्फ भारत बल्कि बंगाली संस्कृति से उससे जुड़ी है। पहले रवींद्रनाथ टैगोर के घर को तोड़ दिया गया। अब महान फिल्ममेकर सत्यजीत रे का बांग्लादेश के ढाका में स्थित पैतृक घर ध्वस्त हो रहा है। उपेंद्र किशोर राय चौधरी (सत्यजीत रे के दादा) का पैतृक घर, जिसे मैमनसिंह में पूर्णलक्ष्मी भवन के नाम से जाना जाता था (जिसे पहले मैमनसिंह शिशु अकादमी के नाम से जाना जाता था)दुर्भाग्य से पिछले एक दशक से खंडहर में तब्दील हो गया है।
बांग्लादेश के होरिकिशोर रे चौधरी रोड पर स्थित, यह सौ साल पुराना घर, प्रतिष्ठित रे परिवार की विरासत से जुड़ा है जिनका बांग्ला साहित्य और कला में योगदान रहा है। होरिकिशोर रे चौधरी, उपेंद्र किशोर, सुकुमार और सत्यजीत रे के पूर्वज थे।

1989 के आसपास इसे छोड़ दिए जाने के बाद यह घर अब बांग्लादेश में एक खंडहर में तब्दील हो चुका है। हालत ये है कि इसकी खिड़कियां और दरवाजे तक लोग चोरी करके ले जा चुके हैं। इस घर की दीवारें भी ढह गई हैं। इस घर में जगह-जगह तोड़फोड़ की गई है।
होना है कंक्रीट ढांचे का निर्माण
बांग्लादेश से सामने आ रही रिपोर्ट्स के मुताबिक सत्यजीत रे के इस घर को एक कंक्रीट के ढांचे के निर्माण के लिए तबाह करने की तैयारी की जा रही है। हालांकि, भारत सरकार ने इस पर हस्तक्षेप किया है। भारत ने कहा है कि बांग्लादेश सत्यजीत रे की पैतृक संपत्ति को न ढहाए। भारत सरकार इस ढांचे की मरम्मत और दोबारा निर्माण के लिए बांग्लादेश के साथ काम करने के लिए तैयार है।

भारत के विदेश मंत्रालय की तरफ से इस मामले को लेकर खेद भी प्रकट किया। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि उनके संज्ञान में एक घटना आई है जिसके अनुसार फिल्म निर्देशक और निर्माता सत्यजीत रे की पैतृक संपत्ति को ध्वस्त करने की तैयारी की जा रही है। भारत सरकार की तरफ से कहा गया है कि अभी यह संपत्ति बांग्लादेश की सरकार के पास है,लेकिन फिर भी यह जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच चुकी है। भारत ने कहा है कि यह बांग्ला संस्कृति का प्रतीक है। इस भवन से जुड़े पुराने इतिहास को देखते हुए इसकी मरम्मत के साथ-साथ इसका दोबारा निर्माण किया जाना जरूरी है। इसे भारत और बांग्लादेश की साझा संस्कृति के तौर पर विकसित किया जा सकता है। इसे एक संग्रहालय के तौर पर विकसित किया जाना चाहिए। भारत सरकार ने अपने प्रस्ताव पर बांग्लादेश से विचार करने की गुजारिश की है।