सिर पर दुपट्टा और चेहरे पर सुकून...पति विराट के टेस्ट मैच से सन्यास लेते ही प्रेमानंद महाराज की शरण में पहुंची अनुष्का शर्मा

Edited By Smita Sharma, Updated: 13 May, 2025 01:13 PM

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सोमवार को हफ्ते की शुरुआत के साथ ही एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा के क्रिकेटर पति विराट कोहली ने टेस्ट क्रिकेट अपने संन्यास का ऐलान कर दिया। उनका ये ऐलान पूरे देश के लिए चौंकाने वाले रहा। इस ऐलान ने विराट के चाहने वालों को काफी निराश किया। पति के टेस्ट मैच...

मुंबई: सोमवार को हफ्ते की शुरुआत के साथ ही एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा के क्रिकेटर पति विराट कोहली ने टेस्ट क्रिकेट अपने संन्यास का ऐलान कर दिया। उनका ये ऐलान पूरे देश के लिए चौंकाने वाले रहा। इस ऐलान ने विराट के चाहने वालों को काफी निराश किया।

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पति के टेस्ट मैच से संन्यास लेते ही अनुष्का विराट के साथ वृंदावन पहुंची। उन्होंने प्रेमानंद महाराज से मुलाकात की और उनका आशीर्वाद ग्रहण किया। दोनों ही पीले कपड़ों में नजर आए। इस मुलाकात की वीडियोज और तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं।

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एक वीडियो में आप देख सकते हैं कि विराट अनुष्का दोनों महाराज के आगे सिर झुका कर आशीष लेते हैं। इस दौरान प्रेमानंद महाराज का एक शिष्य बताता है कि विराट और अनुष्का आए हैं। पहले प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि बैठो और फिर पूछते हैं कि वे प्रसन्न हैं। दोनों मुस्कुराते हुए हां कहते हैं।

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फिर प्रेमानंद महाराज कहते हैं- 'ठीक ही रहना चाहिए, हम आपको अपने प्रभु का विधान बताते हैं थोड़ा सा, जब प्रभु किसी पर कृपा करते हैं, ये वैभव मिलना कृपा नहीं है, ये पुण्य है। पुण्य एक घोर पापी को भी मिल जाता है। पाप करने के बाद भी उनका कोई पुण्य होता है जिससे वो अच्छा जीवन जीते हैं। ये पूर्व के पुण्य हो सकते हैं। वैभव बढ़ना और यश बढ़ना भगवान की कृपा नहीं मानी जाती। भगवान की कृपा मानी जाती है अंदर का चिंतन बदलना।'

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प्रेमानंद महारात ने अनुष्का और विराट से आगे कहा- 'जिससे आपके अनंत जन्मों के संस्कार भस्म होकर, अगला जो है वो बहुत उत्तम होता होगा। ये अंदर के चिंतन से होता है बाहर के चिंतन से कुछ भी नहीं होता। अंदर का चिंतन मतलब, अच्छा हम लोगों का स्वभाव बन गया है बहिरमुखी, यानी बाहर, यश, कीर्ति, लाभ, विजय, इससे हमको सुख मिलता है, अंदर से कोई मतलब नहीं रहता, कोई विर्लय ही अंदर से रखता है। अब क्या होता है भगवान जब कृपा करते हैं तो संत समागम देते हैं, दूसरी जब कृपा होती है तो विपरीतता देते हैं।

 

फिर अंदर से एक रास्ता देते हैं, ये मेरा रास्ता है। ये परम शांति का रास्ता है, शांति का नहीं, भगवान वो रास्ता देते हैं, जिससे वो आपको अपने पास बुला लेते हैं। बिना प्रतिकूलता के संसार का राग्य नष्ट नहीं होता। किसी को भी वैराग्य होता तो संसार की प्रतिकूलता देखकर होता है। सब कुछ हमारे अनुकूल है तो हम आनंदित होकर उसका भोग करते हैं, जब हमारे ऊपर प्रतिकूलता आती है तो लगता है कि इतना झूठा संसार।'


 

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