विक्रमादित्य मोटवानी ने क्रिएटिव लिबर्टी से लेकर नए दौर की कहानियों के बारे में खुलकर की बात

Edited By Jyotsna Rawat, Updated: 05 May, 2025 03:39 PM

vikramaditya motwane opens up about creative liberty to new age storytelling

वर्ल्ड ऑडियो विजुअल एंड एंटरटेनमेंट समिट (WAVES) में एक खास पैनल डिस्कशन का आयोजन किया गया, जिसमें फिल्म और वेब वर्ल्ड से जुड़ी कई जानी-मानी हस्तियां शामिल हुईं।

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। वर्ल्ड ऑडियो विजुअल एंड एंटरटेनमेंट समिट (WAVES) में एक खास पैनल डिस्कशन का आयोजन किया गया, जिसमें फिल्म और वेब वर्ल्ड से जुड़ी कई जानी-मानी हस्तियां शामिल हुईं। इस चर्चा में डायरेक्टर विक्रमादित्य मोटवाने, निखिल आडवाणी, सुदीप शर्मा, शुभ शिवदासानी, सलोना बेन्स जोशी और प्राइम वीडियो के हेड शामिल हुए।

WAVES समिट में हुए पैनल 'टेकिंग द लीप: स्टोरी टेलिंग फ्रॉम इंडिया, बाय इंडिया, फॉर द वर्ल्ड' में इंडस्ट्री के कुछ सबसे बड़े फिल्ममेकर्स और कंटेंट क्रिएटर्स ने शिरकत की। इस चर्चा में विक्रमादित्य मोटवाने, निखिल आडवाणी, सुदीप शर्मा, शुभ शिवदासानी, सलोना बेन्स जोशी, गौरव गांधी (वाइस प्रेसिडेंट – APAC & MENA, प्राइम वीडियो) और निखिल माधोक ( हेड ऑफ ओरिजिनल्स, प्राइम वीडियो इंडिया) शामिल थे। पैनल में इस बात पर चर्चा हुई कि कैसे भारत की कहानियां अब सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि अब उन्हें ग्लोबल ऑडियंस के लिए भी तैयार किया जा रहा है। इसके साथ ही यह भी बताया गया कि स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स ने कंटेंट बनाने के तरीके को किस तरह से बदला है।

विक्रमादित्य मोटवाने ने पैनल में बात करते हुए कहा, "प्राइम वीडियो जैसे स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स की वजह से अब फिल्ममेकर्स को वो क्रिएटिव आज़ादी मिल रही है जो पहले सिर्फ थिएटर तक सीमित थी। अब हमें सिर्फ दो घंटे की फिल्म तक ही नहीं सोचना पड़ता।” उन्होंने आगे कहा कि मेकर्स अब हर तरह की कहानियां सुना सकते हैं चाहे वो लंबी हों, गहरी हों या थोड़ी अलग हों। हालांकि उन्होंने ये भी माना कि अभी पूरी आज़ादी और एक्सपेरिमेंटेशन तक पहुँचना बाकी है, लेकिन ये सफर ज़्यादा दूर नहीं। मोटवाने ने भरोसा जताया, “अभी हम वहां तक पहुंचे नहीं हैं, लेकिन जल्दी ही पहुंच जाएंगे।” 

मुंबई डायरीज़ बनाने वाले और फिलहाल अपनी नई सीरीज़ द रेवोल्यूशनरीज की शूटिंग में व्यस्त निखिल आडवाणी ने पैनल में कहा, "मेरे लिए कहानी का असली दम रिसर्च और सोर्स मैटेरियल में होता है। खासकर जब आप पीरियड स्टोरीज़ बना रहे हों, तो जितना समृद्ध रिसर्च होगा, उतनी ही मज़बूत शुरुआत होगी।” हालांकि उन्होंने ये भी जोड़ा कि पीरियड कहानियों को सिर्फ इतिहास के पाठ की तरह नहीं परोसा जा सकता। उन्होंने कहा “अगर हम इतिहास पढ़ाने बैठ गए, तो ऑडियंस का इंटरेस्ट चला जाएगा।"

पाताल लोक के क्रिएटर सुदीप शर्मा ने पैनल में किरदारों के डेवलपमेंट को लेकर दिलचस्प बातें शेयर कीं। उन्होंने कहा, “एक किरदार धीरे-धीरे समय के साथ कई लेवल पर तैयार होता है। फिर जब ऐक्टर आता है, तो वो उसमें अपनी समझ और परतें जोड़ता है। और सेट पर पहुंचकर तो कुछ और ही जादू हो जाता है।” हाथीराम जैसे किरदार की लंबी पकड़ और लोगों से जुड़ाव पर उन्होंने कहा, “हाथीराम में कुछ बहुत ही सच्चा और ईमानदार है जो ज़्यादातर लोगों से जुड़ता है, वो कोई और बनने की कोशिश नहीं करता... उसकी यही असलियत और चौंका देने की काबिलियत उसे सबसे अलग बनाती है।”

पहली बार क्रिएटर के तौर पर सामने आईं शुभ शिवदासानी और सलोना बेंस जोशी (जिनकी सीरीज़ दुपहिया है) ने स्टोरीटेलिंग में फीमेल गेज़ यानी महिला दृष्टिकोण को लेकर अपनी राय रखी। उन्होंने कहा, “शुरुआत में ऐसा कोई इरादा नहीं था कि सिर्फ महिला किरदारों पर ही फोकस करें। हमारे साथ दो और को-क्रिएटर और राइटर हैं जो पुरुष हैं, और उन्होंने भी महिला किरदारों को बहुत अच्छी तरह लिखा है। हां, हम एक-दूसरे से सवाल ज़रूर पूछते थे क्योंकि हमारी बैकग्राउंड अलग है।” उन्होंने आगे कहा, “महिला दृष्टिकोण से ज़्यादा ये बात छोटे शहर और बड़े शहर की ऑडियंस को लेकर थी। हमारी कोशिश थी कि हर कोई उस कहानी से जुड़ सके जो हम सुनाना चाहते हैं। चाहे सीरीज़ कॉमेडी ही क्यों न हो, हर किरदार को इस तरह गढ़ा गया कि लोग उसे ग़लत न समझें और सभी को वो सहज और साफ-सुथरी लगे।”

प्राइम वीडियो इंडिया के हेड ऑफ ओरिजिनल्स निखिल माधोक ने कंटेंट चुनने के अपने नज़रिए पर बात करते हुए कहा, “शुरुआत में ही हमें समझ आ गया था कि भारत में थीम बहुत ज़्यादा मायने रखती है। मेरे हिसाब से थीम आत्मा होती है और जॉनर शरीर। और हम इन्हीं दोनों के मेल को तलाशते हैं।” उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया, “हमारी एक थीम है महिलाओं का रूढ़ियों को तोड़ना। इसी थीम के तहत हमने हाल ही में एक हॉरर सीरीज़ खौफ लॉन्च की है, जो बताती है कि जब कोई युवती छोटे शहर से बड़े शहर आती है, तो उसे किन मुश्किलों और पुराने ज़ख्मों से जूझना पड़ता है। कहानी का जॉनर है हॉरर, लेकिन असल में ये महिलाओं की हिम्मत और जज़्बे की बात है। दूसरी थीम है, भारत की कहानियों में साहस और शौर्य। ये साहस बॉर्डर पर दिखता है जैसे शेरशाह में, या फिर मुंबई डायरीज़ में एक डॉक्टर का साहस, या फिर द फैमिली मैन में मनोज बाजपेयी का किरदार, या पाताल लोक में ईमानदार पुलिस वाला हाथीराम चौधरी। एक और थीम है – भारत के सपनों की उड़ान। इस थीम को हमने ह्यूमर के जॉनर में दिखाया है जैसे पंचायत और दुपहिया।”

गौरव गांधी, वाइस प्रेसिडेंट - एशिया पैसिफिक और MENA, प्राइम वीडियो ने इस बात पर ज़ोर दिया कि स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स पर दिखाई जा रही कहानियों ने कैसे भारतीय दर्शकों की भाषाई पसंद को और भी विविध बना दिया है। उन्होंने कहा, “हमें यह समझ आया कि भारत में असली असर डालने के लिए हमें पूरी तरह से लोकल सोचने की ज़रूरत है। और भारत जैसा देश, जहाँ एक लोकल नहीं बल्कि कई लोकल हैं यहाँ की भाषाएं, संस्कृति, पसंद, माहौल सब अलग हैं। इसलिए हमें कई लोकल नजरियों से काम करना पड़ा। पहले लोग सिर्फ अपनी भाषा में कंटेंट देखते थे, लेकिन अब हमारे पास अलग-अलग भाषाओं में प्रोग्रामिंग करने का मौका मिला। इससे भारतीय दर्शकों का भाषाई दायरा बढ़ा है। आज प्राइम वीडियो इंडिया के लगभग 60% ग्राहक 4 या उससे ज़्यादा भारतीय भाषाओं में कंटेंट देख रहे हैं।

चर्चा के आखिर में गौरव गांधी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि क्रिएटर्स और स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स दोनों में रिस्क लेने की हिम्मत होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर हमें नई और विविध आवाज़ों को सामने लाना है तो इसके लिए सोच-समझकर कोशिश करनी पड़ेगी, नए क्रिएटर्स को मौका देना होगा और पुराने क्रिएटर्स को बेहतरीन कहानियों के साथ आगे आना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि अच्छे शोज़ पूरी इंडस्ट्री का लेवल ऊपर उठाते हैं।

आज का एंटरटेनमेंट जगत हर किसी से, चाहे वो क्रिएटर्स हों, टेक्नीशियन हों या दर्शक सबसे सीख रहा है। दर्शकों का प्यार और पसंद यह तय करता है कि आगे क्या बनना चाहिए, और उन्हीं की पसंद से प्रेरणा लेकर नई कहानियां बनाई जा रही हैं।

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