इस कथक डांसर को 'वेश्या' कहकर बुलाते थे लोग, डांसर के परिवार को झेलना पड़ा था बहिष्कार

Edited By Punjab Kesari, Updated: 08 Nov, 2017 01:22 PM

sitara devi birthday

कथक साम्राज्ञी सितारा देवी दुनिया भर में अपने नृत्य के लिए फेमस हुई। सितारा देवी का जन्म 8 नवंबर 1920 को कोलकाता में हुआ था। ब्राह्मण परिवार में जन्मी सितारा देवी

नई दिल्ली : कथक साम्राज्ञी सितारा देवी दुनिया भर में अपने नृत्य के लिए फेमस हुई। सितारा देवी का जन्म 8 नवंबर 1920 को कोलकाता में हुआ था। ब्राह्मण परिवार में जन्मी सितारा देवी को रविनंद्रनाथ टैगोर ने 'नृत्य साम्राज्ञी' का नाम दिया था। उनका निधन 25 नवंबर 2014 को मुंबई में हुआ था।

दुनिया की जानी-मानी सर्च इंजन गूगल ने सितारा देवी के 97वी जयंती के मौके पर खास सम्मान देते हुए शानादर डूडल बनाया है। गूगल डूडल में कथक सितारा देवी को गुलाबी रंग के कपड़े में नृत्य की मुद्रा दिखाया गया है। डूडल में सितारा देवी के आस-पास घुंघरू, तबला और सितार की झलक भी दिखाई गई है।

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सितारा देवी के पिता सुखदेव महाराज एक शिक्षक थे और वह कथक भी किया करते थे। अपने पिता से कथक का ज्ञान लेने वाली सितारा देवी ने महज 10 साल की उम्र में ही अकेले प्रस्तुति देना शुरू कर दिया था। जानकारी के अनुसार जब उनका परिवार मुंबई आ गया था तब उन्होंने आतिया बेगम पैलेस में कथक की प्रस्तुति दी, जो केवल चुनिंदा दर्शकों के लिए ही था।


इस कार्यक्रम में नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर, स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू और पारसी परोपकारी सर कोवासजी जहांगीर भी शामिल थे। महज 16 साल की उम्र में सितारा देवी ने अपनी प्रस्तुति से दर्शकों का दिल जीत लिया था। कार्यक्रम में मौजूद टैगोर ने उनके नृत्य से इस कदर प्रभावित हुए कि उन्हें 'नृत्य साम्राज्ञी' की उपाधि दे दी।
 
आपको बता दें कि देश भर में कथक साम्राज्ञी के तौर पर मशहूर सितारा देवी ने देश के बाहर लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल और न्यूयॉर्क के कार्नेगी हॉल जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कथक की प्रस्तुति दी और दुनिया भर में ख्याति प्राप्त की।


जब उनके पिता महराज सुखदेव ने अपनी बेटी धन्नो को कथक सिखाने का फैसला लिया तो समाज ने उनका बहिष्कार किया था। इतना ही नहीं उनकी बेटी धन्नो को लोग प्रॉस्टिट्यूट कहकर भी बुलाने लगे थे। तब पिता सुखदेव ने कहा था, 'जब राधा कृष्‍ण के लिए डांस कर सकती है तो मेरी बेटी क्यों नहीं।' बहिष्कार के बाद महाराज जी ने अपना घर बदल दिया था। यहां आकर उन्होंने एक डांसिंग स्कूल शुरू किया जहां वेश्याओं के बच्चों को दाखिला दिया। 

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