MOVIE REVIEW: ‘लस्ट स्टोरीज़’

Edited By Punjab Kesari, Updated: 21 Jun, 2018 12:21 PM

movie review of lust stories

मुंबई: वेब मूवी ‘लस्ट स्टोरीज़’ 15 जून को रिलीज हो चुकी है। लस्ट कहानियों को किसी सेंसरशिप की बंदिश के बगैर नेटफ्लिक्स के लिए फिल्माया गया है। हिंदी फिल्म के इन चार (करण जौहर, अनुराग कश्यप, जोया अख्तर, दीबाकर बनर्जी) बेहतरीन फिल्ममेकर्स ने पहले भी...

मुंबई: वेब मूवी ‘लस्ट स्टोरीज़’ 15 जून को रिलीज हो चुकी है। लस्ट कहानियों को किसी सेंसरशिप की बंदिश के बगैर नेटफ्लिक्स के लिए फिल्माया गया है। हिंदी फिल्म के इन चार (करण जौहर, अनुराग कश्यप, जोया अख्तर, दीबाकर बनर्जी) बेहतरीन फिल्ममेकर्स ने पहले भी ‘बॉम्बे टॉकीज’ के लिए कोलाबोरेट किया था। मगर ‘लस्ट’ जैसे विषय पर इन चारों फिल्ममेकर्स को साथ देखने से ज्यादा सुखद कुछ और नहीं हो सकता था। पहली कहानी की नायिका कालिंदी (राधिका आप्टे), एक प्रोफ़ेसर, फिल्म के पहले दृश्य में ही ‘राज़ कपूर’ के गाने के बैकग्राउंड में आधी रात को अपने स्टूडेंट के साथ उसके घर में दाखिल होती है। बंद कमरे में भेद खुलता है कि स्टूडेंट को कुछ भी नही आता। कालिंदी अफ़सोस जाहिर करती है कि सब उसे ही करना पड़ेगा। वह स्टूडेंट को वार्न करती है कि मेरे प्यार में मत पड़ जाना, मर्द बड़े पजेसिव होते हैं, मै शादीशुदा हूं। लेकिन जब स्टूडेंट एक क्लासमेट को डेट करता है, तो वह फ्रस्टेट हो जाती है। ईर्ष्या, गुस्सा, जलन और पजेसिवनेस ज़ाहिर तौर पर उसके दिल में घर कर लेते हैं। इसी बीच उसका प्यार अपने कलीग से होता है। वो कालिंदी को बताता है कि मगरमच्छ हर कहीं इसलिए सर्वाइव कर लेता है क्योंकि वह मोनोगेमस होता है। उसकी यह सोच एक टिपिकल भारतीय पुरुष का प्रतिनिधित्व करती है। कालिंदी कई मर्दों से संबंधों को जस्टिफाई करने के लिए द्रौपदी, अमृता प्रीतम और चेतन भगत के ‘वन इन्डियन गर्ल’ का हवाला देती है जिनके एक से अधिक मर्दों से सम्बन्ध रहे। 

 

राधिका मोनोलॉग में दिखाती हैं कि उन्हें इस पीढ़ी की सबसे प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों में क्यों गिना जाता है। इन संवादों में अनुराग कश्यप शिखर पर पहुंच जाते हैं।निस्संदेह वे ‘सेक्स विमर्श’ के सबसे सुलझे हुए फिल्ममेकर हैं। मोनोलॉग की परतों में समूचे भारतीय मन के ‘लस्ट’ की अन्तर्दृष्टि मिलती हैं।

 

PunjabKesari

 


फिल्म की दूसरी कहानी के निर्देशित है ज़ोया अख्तर। सुधा (भूमि पेडनेकर) मुंबई में एक कुंवारे पेशेवर अजीत (नील भूपालम) के घर में नौकरानी है। सेक्स का बाद अजीत नहाने चला जाता है और भूमि अपना काम निबटाने लगती है। जब सुधा अजीत को टॉवेल देती है तो वो सुधा को कहता है- ‘गंदी साली’। सुधा पलटकर जवाब देती है- ‘ नंगा साला’। अजीत की टिप्पणी पुरुषों का पूर्वाग्रह बयां करती है। जिसके साथ वो सो लिए उसे सेकण्डरी समझने लगते हैं। फिर अजीत के पैरेंट उसकी शादी तय कर देते हैं। सुधा खुद से खफा है क्योंकि मालिक के साथ हमबिस्तर होकर खुद को घरवाली समझ बैठी थी। निराश सुधा जब दूसरे घर में काम करने वाली से मिलती है तो वो चहकती हुई बताती है कि नेहा मैडम ने उसे साड़ी दी है। सुधा भी उसे मिठाई खिलाती है जो उसे मिली होती है। पूरी फिल्म में भूमि सिर्फ़ दो शब्द बोलती हैं, मगर उनकी देहभाषा पूरी फिल्म में इतनी सघन होती है कि जिन दृश्यों में वो नहीं भी होती हैं, उनको भी मुतासिर करती मालूम पड़ती हैं।

 

तीसरी कहानी डायरेक्ट की है दिवाकर बनर्जी ने। रीना (मनीषा कोइराला) का सुधीर (जयदीप अहलावत) एक परिपक्व रिश्ता है। कामनाओं का ज्वार जलते सूरज की तरह नही बल्कि शीतल चांद की तरह है। उसके पति सलमान (संजय कपूर) को इसकी भनक लगती है तो रीना सलमान को बीच हॉउस पर ही बुला लेती है। फिर रीना दिलचस्प और बेबाक तरीके से अपने पति और प्रेमी से डील करती है। आखिर में जाते समय जब उसका पति उससे पूछता है कि जिस दिन तुमने सुधीर को फोन किया था, क्या हमारे बीच झगड़ा हुआ था? तो रीना बिलकुल इत्मीनान से जवाब देती है -“नो, इट वाज अ पीसफुल डे”। जो रीना कहानी की शुरुआत में इतनी ब्यग्र और बेचैन थी, आखिर तक कॉम और कॉन्फिडेंट हो जाती है। वो सवाल पूछती है कि हर बार उसकी जिंदगी को उसके बच्चों के साथ जोड़कर क्यों देखा जाता है? मनीषा , अहलावत और संजय अपने किरदार में सहज दिखते हैं। मनीषा के फेसिअल एक्सप्रेशन बहुत ही अर्थपूर्ण हैं। उनके चेहरे के कई क्लोज शॉट्स कहानी के रहस्य, रोमांच की शिद्दत को बढ़ाते हैं।

 


फिल्म की आखिरी कड़ी करण जौहर ने निर्देशित की है। यह एकमात्र कहानी है जिसका सेटअप स्माल टाउन है। करण जौहर फिल्म में बॉलीवुड का फ्लेवर लाते हैं। लहराती लाल साड़ियां और खुले हुए बाल। यह बहुसंख्यक भारतीय औरतों के दर्द की दास्तान है। भारतीय पुरुष स्खलित होने को ही सेक्स समझते है और अपने-अपने पार्टनर की भावनाओं की जरा भी परवाह नहीं करते। स्त्रियों से अपेक्षा की जाती है कि कोई उम्मीद न रखें। उनकी हसरतों का दायरा ‘दो बच्चों’ से ज्यादा नहीं होना चाहिए। जो शादी से पहले ख़्वाबगाह थी वही शादी के बाद कत्लगाह बन जाती है। फिर इसमें क्या ताज़्जुब की 90% से ज्यादा औरतें ‘आर्गाज़्म’ को जानती ही नहीं। हिंदी में आर्गाज़्म का समानार्थी कोई शब्द भी नहीं। ‘फोरप्ले’ की तो खैर बात रहने ही देते हैं। नेहा धूपिया और कियारा आडवाणी ‘स्मार्ट टाउन गर्ल’ के किरदार में जँचती हैं। कियारा जब बोलने और न बोलने के द्वन्द में चुप रहना चुनती है तो उनकी आंखें बहुत कुछ बोलती हैं। कंजर्वेटिव लूज़र के क़िरदार को विकी कौशल से बेहतर कौन निभा सकता था? फिल्म दिखाती है कि फ्रायड इन्डियन माइंड के बावस्ता अभी भी बहुत प्रासंगिक है। एक औसत आदमी बेतरह दमित है। बहुसंख्यक भारतीयों के लिए सेक्स ऐक्ट से ज्यादा ख़याल है और इसीलिए इतना बड़ा टैबू भी। फिल्म में संवादों के परे दृश्यों के दरम्यान कई अभिब्यक्तियाँ होती हैं जो दर्शकों को कन्वे होती है। 
 

Related Story

Trending Topics

IPL
Royal Challengers Bengaluru

190/9

20.0

Punjab Kings

184/7

20.0

Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

RR 9.50
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!