मनमोहन सिंह नहीं, बल्कि संजय बारू की फिल्म ज्यादा लगती है 'द ऐक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर'

Edited By Konika, Updated: 11 Jan, 2019 01:25 PM

movie review of the accidental prime minister review

बॉलीवुड एक्टर अनुपम खेर की फिल्म ''द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर'' आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। विवादों में घिरने के बाद अाखिरकार ये फिल्म रिलीज हो ही गई है। ये फिल्म संजय बारु की किताब ''द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर'' पर बनी है जो 2004 से 2008...

मुंबई: बॉलीवुड एक्टर अनुपम खेर की फिल्म 'द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर' आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। विवादों में घिरने के बाद अाखिरकार ये फिल्म रिलीज हो ही गई है। ये फिल्म संजय बारु की किताब 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' पर बनी है जो 2004 से 2008 तक पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे। पद छोड़ने के बाद उन्होंने यह किताब लिखी। किताब में उन्होंने बताया है कि मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री तो थे लेकिन सारे फैसले कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी लेती थीं। संजय बारु के मुताबिक, मनमोहन सिंह बहुत कुछ करना चाहते थे लेकिन उनके आड़े पार्टी आ रही थी। अब फिल्म 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले रिलीज हुई है। इस फिल्म में जहां पीएम के किरदार में अनुपम केर है, वहीं संजय बारु के रोल में अक्षय खन्ना हैं। 

 

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कहानी 

ये फिल्म मनमोहन सिंह से ज्यादा संजय बारु के बारे में है। इस फिल्म के हीरो तो संजय बारु हैं। इसे देखकर लगता है कि संजय बारु को इस बात से परेशानी कम थी कि सोनिया गांधी बड़े फैसले लेती हैं, बल्कि बारु की मंशा ये थी कि उनके हिसाब से पीएमओ चले।
जिन्हें राजनीति में दिलचस्पी नहीं है उन्हें ये फिल्म बिल्कुल समझ नहीं आएगी। किताब के पन्नों की तरह ही फिल्म फटाफट चलती है। कब कौन सा चैप्टर खत्म होकर दूसरा शुरु हो गया ये आम दर्शकों के लिए समझना मुश्किल होगा।


फिल्म UPA सरकार की पूरे एक दशक की राजनीतिक उठापटक को दिखाती है। यूपीए के पहले कार्यकाल के दौरान की शुरुआती बड़ी घटनाओं को जल्दबाजी में दिखाया गया है। 2004 में सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री पद छोड़ने से फिल्म शुरु होती है। इसके बाद संजय बारु की पीएमओ में एंट्री, एनएसी का गठन, न्यूक्लियर डील, राहुल गांधी का ऑर्डिनेंस फाड़ना और आखिर में 2014 के लोकसभा चुनावों में यूपीए को मिली हार तक की झलक बहुत ही नाटकीय ढ़ंग से दिखाई गई है।


डायरेक्शन


फिल्म के डायरेक्टर विजय रत्नाकर ने कहा था कि ये फिल्म ये पॉलिटिकल नहीं बल्कि ह्यूमरस फिल्म है। उन्हें बिल्कुल ये समझने की जरुरत है कि मजाक और ह्यूमर में क्या फर्क है।

 

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एक्टिंग


मनमोहन सिंह के रोल में अनुपम खेर कई बार खटकते हैं। उनकी चाल, ढाल और आवाज बहुत ज्यादा बनावटी लगती है। उनके लिए ये चुनौतीपूर्ण भी था क्योंकि मनमोहन सिंह के हाव भाव को लोगों ने देखा है। उन्हें कॉपी करने की वजह से ही अनुपम खेर एक्टिंग के मामले अक्षय खन्ना के सामने दब जाते हैं। अक्षय खन्ना के पास संजय बारु के रोल को अपने हिसाब से निभाने का पूरा मौका था और उन्होंने अपना दमखम दिखा दिया है। ये फिल्म उन्हीं के कंधों पर टिकी है। मेकर्स पर कई सवाल इस वजह से भी उठते हैं क्योंकि मनमोहन सिंह के कैरेक्टर को मजाकिया भी बनाया गया है। कहीं-कहीं दर्शकों को हंसाने के लिए कार्टून में इस्तेमाल होने वाले म्यूजिक का भी उपयोग किया गया है। उनके हिस्से डायलॉग्स ऐसे है जो फिल्म के हल्केपन को बयां करते हैं। उनके डायलॉग्स कुछ ऐसे हैं, 'मैं दूध पीता बच्चा नहीं हूं, सिर्फ फैक्ट बताइए...', 'शेर भी कभी दांत साफ करता है क्या...' इत्यादि।

 

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बाकी एक्टर्स की बात करें तो सोनिया गांधी की भूमिका में सुजैन बर्नेट अपने कैरेक्टर में फिट लगती हैं। उनका बोलने का लहजा भी काफी कन्विंसिंग लगता है। वहीं राहुल की भूमिका में अर्जुन माथुर बस उतने ही दिखे हैं जितना आपने ट्रेलर में देखा होगा। अहाना कुमरा को प्रियंका गांधी का रोल तो मिला है लेकिन फिल्म में स्पेस नहीं मिला। फिल्म के आखिर में मनमोहन सिंह कहते है कि 'उन्हें इतिहास मीडिया की हेडलाइन्स से नहीं बल्कि उनके कामों से याद रखेगा..।' फिल्म देखने के बाद भी यही उम्मीद की जा सकती है कि लोग फिल्म देखकर उनकी छवि अपने दिमाग में ना बनाएं। साथ ही अक्षय खन्ना की दमदार एक्टिंग के लिए भी आप इसे देख सकते हैं।
 

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