Edited By suman prajapati, Updated: 21 Jan, 2025 06:14 PM
निर्देशक राम गोपाल वर्मा की फिल्म 'सत्या' हाल ही में सिनेमाघरों में दोबारा रिलीज की गई। इस मौके पर निर्देशक भावुक हो गए और उन्होंने सोशल मीडिया पर एक नोट शेयर कर बताया कि वह शराब के नशे में नहीं, बल्कि अपनी सफलता और अहंकार के नशे में थे। यह एहसास...
मुंबई. निर्देशक राम गोपाल वर्मा की फिल्म 'सत्या' हाल ही में सिनेमाघरों में दोबारा रिलीज की गई। इस मौके पर निर्देशक भावुक हो गए और उन्होंने सोशल मीडिया पर एक नोट शेयर कर बताया कि वह शराब के नशे में नहीं, बल्कि अपनी सफलता और अहंकार के नशे में थे। यह एहसास उन्हें 27 साल बाद 'सत्या' देखने के बाद हुआ।
रामगोपाल वर्मा ने अपने एक्स पोस्ट पर लिखा, 'सत्या' को 27 साल बाद देखकर मैं इतना भावुक हो गया था कि मेरे आंसू बहने लगे। फिल्म बनाना जुनून की पीड़ा से पैदा हुए बच्चे को जन्म देने जैसा है, बिना ये जाने कि मैं किस तरह के बच्चे को जन्म दे रहा हूं। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक फिल्म को टुकड़ों में बनाया जाता है, बिना यह जाने कि यह कब बनकर तैयार होगी। निर्माण के समय ध्यान इस बात पर होता है कि दूसरे इसके बारे में क्या कह रहे हैं और उसके बाद चाहे वह हिट हो या ना, हम आगे की कहानी के बारे में सोचने लग जाते हैं।
राम गोपाल वर्मा ने आगे लिखा, 'दो दिन पहले तक, मैंने इसे एक उद्देश्यहीन अपनी यात्रा में एक और कदम मानकर इससे प्रेरित होने वाली अनगिनत प्रेरणाओं को अनदेखा कर दिया था। सत्या की स्क्रीनिंग के बाद होटल में वापस आकर, अंधेरे में बैठे हुए, मुझे समझ में नहीं आया कि अपनी तथाकथित बुद्धिमत्ता के बावजूद, मैंने इस फिल्म को भविष्य में जो कुछ भी करना चाहिए, उसके लिए बेंचमार्क क्यों नहीं बनाया।
मुझे यह भी एहसास हुआ कि मैं सिर्फ उस फिल्म में हुई त्रासदी के लिए नहीं रोया था, बल्कि मैं अपने उस रूप के लिए खुशी से भी रोया था। मैं उन सभी लोगों के साथ विश्वासघात के अपराध बोध से भी रोया था, जिन्होंने 'सत्या' के कारण मुझ पर भरोसा किया था।'
निर्देशक ने लिखा, 'मैं शराब के नशे में नहीं, बल्कि अपनी सफलता और अपने अहंकार के नशे में था, हालांकि, मुझे दो दिन पहले तक इसका एहसास नहीं था। 'रंगीला' और 'सत्या' की रोशनी ने मुझे अंधा कर दिया और अपनी तकनीकी जादूगरी या कई अन्य चीज़ों का भद्दा प्रदर्शन करने को लेकर फिल्में बनाने में भटक गया, जो निरर्थक थीं। मैं एक सरल और सामान्य सत्य को भूल गया था कि तकनीक किसी दिए गए विषय को ऊपर उठा सकती है, लेकिन उसे आगे नहीं ले जा सकती।'
उन्होंने कहा, ' मेरे शानदार नजरिए ने मुझे सिनेमा में कुछ नया करने के लिए प्रेरित किया, उसने मुझे अपने काम के मूल्य से भी अंधा कर दिया और मैं आसमान की ओर मुंह करके दौड़ने वाला वह शख्स बन गया, जो अपने पैरों के नीचे लगाए गए बगीचे को देखना ही भूल गया और यही मेरी गरिमा में आई गिरावट की वजह बन गई।
अंत में उन्होंने कहा, 'मैं अब जो कुछ भी कर चुका हूं, उसमें सुधार नहीं कर सकता। लेकिन मैंने दो रात पहले अपने आंसू पोंछते हुए खुद से वादा किया था कि अब से मैं जो भी फिल्म बनाऊंगा, वह उस सम्मान के साथ बनाऊंगा जिसके लिए मैं शुरू में निर्देशक बनना चाहता था। मैं 'सत्या' जैसी फिल्म फिर कभी नहीं बना पाऊंगा, लेकिन ऐसा करने का इरादा ना रखना भी सिनेमा के खिलाफ एक अक्षम्य अपराध है। मेरा मतलब यह नहीं है कि मुझे 'सत्या' जैसी फिल्में बनाते रहना चाहिए, लेकिन शैली या थीम से परे कम से कम उसमें 'सत्या' की ईमानदारी होनी चाहिए।'